परिवार की एकता: आपके हाथ
BY ADMIN PUBLISHED September 7, 2020, UPDATED January 5, 2023
बूंद – बूंद से सागर भर जाता है। पैसा-पैसा एकत्र करने से खजाना बन जाता है ।वैसे ही प्रत्येक जन के मिलने से समाज का निर्माण हो जाता है।भारत की संस्कृति व सभ्यता में आरंभ से ही “वसुधैव कुटुंबकम” का आदर सर्वोपरि रहा है ।आज के समाज में फैली अराजकता, तानाशाही अव्यावहारिकता का मूल कारण ही परिवार में बच्चे को दिए जाने वाले अच्छे संस्कारों का अभाव है।
जहां पहले अभिभावक बच्चों को माता-पिता की सेवा, अभिवादन करना, बड़ों का सम्मान करना, मिलजुल कर रहना, प्रेम, विनम्रता व अनुशासन आदि गुणों का पाठ पढ़ाते थे।वहां आज के अभिभावक स्वयं ही इन आदर्शों से कोसों दूर है। वह स्वयं ही संस्कृति और सभ्यता का आदर्श भूल चुके हैं, जिसके लिए भारत को विश्व भर में जाना जाता था।
इतिहास और विज्ञान दोनों ही इस बात के साक्षी हैं कि मनुष्य के चरित्र-निर्माण में परिवार द्वारा प्रदत्त संस्कारों का बहुत बड़ा योगदान होता है। यह संस्कार कुम्भकार द्वारा बर्तन बनाते समय छोड़ी गई रेखाओं की भांति मानव के मन पर अंकित हो जाते हैं। ध्रुव, प्रहलाद, महात्मा गांधी, वीर शिवाजी, परशुराम आदि अनेक जीवंत उदाहरण है, जो सिद्ध करते हैं कि घर से मिले हुए संस्कार जीवन के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करते हैं और पूरे जीवन-काल उसका मार्गदर्शन करते हैं।
आज के परिवारों का विघटन व समाज में बिखराव का कारण मजबूत बंधन का अभाव माना जा सकता है, जो समाज को बांधे रखने में सहयोग करता था। वास्तविकता यह है कि प्रेम, सहयोग, मधुर बोली, बड़ों का सम्मान करना आदि इन सब का सहारा लेकर ही जीवन को आसान बनाना संभव हो जाता है और व्यक्ति जटिल से जटिल परिस्थिति में भी सुगमता के मार्ग ढूंढ लेता है। सहयोग से बड़ी से बड़ी समस्याओं के हल निकल जाते हैं।
तो आइए एक खूबसूरत शुरुआत करें परिवार से लेकर विश्व निर्माण तक के लंबे सफर की –
आशा का दीपक टिमटिमाता रहेगा,
भूले – बिसरे को मिलाता रहेगा।
मुश्किलों में सहारा दिलाता रहेगा,
नया मार्ग हमेशा दिखाता रहेगा,
हमेशा मंजिलों तक हमें पहुंचाता रहेगा।
डॉ0 रीना अग्रवाल
हिंदी विभाग,
डी0पी0एस0जी0 इन्टरनेशनल स्कूल